My Trip To Amarnath....!





जम्मू कश्मीर प्रदेश में मेरा पहला प्रवेश नहीं था, इसलिए मुझे कोई बहुत आशचर्य नहीं हुआ, वहाँ के रीती रिवाज़, पहनावा, दहशतगर्दी, अराजकता आदि |
सड़क मार्ग से कश्मीर की मेरी यह प्रथम यात्रा थी | जवाहर टनल के बाद मुझे लगा कि कश्मीर जिसे हम भारत का अभिन्न अंग कहते हैं, जिसके ऊपर भारत सरकार देश का बहुत बड़ा धन खर्च करती है, जहाँ 20 रूपये प्रति किलो खरीदा गया चावल, चीनी एवं दालें आदि भारी सबसिडी के साथ दिए जाते हैं | वहाँ के लोगों की मानसिकता कितनी दूषित है .........?
देश के विभिन्न भागों से जाने वाले लोगों से स्थानीय नागरिक पहला प्रश्न करते हैं - 'क्या तुम हिंदुस्तान से आये हो ?' , जब मेने इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया -"क्या यह हिंदुस्तान नहीं है ?" तो तपाक से कई कश्मीरी नौजवानों ने उत्तर दिया -'नहीं यह कश्मीर है'| यह मेरा पहला अनुभव था |

दूसरा अनुभव भी कम चौंकाने वाला नहीं था | घाटी में भीख मांगने वाले लोगों की कमी नहीं थी | बच्चों से लेकर बूढ़े स्त्री-पुरुष सभी मुस्लिम भिक्षुक भोले के नाम पर भीक मांग रहे थे | खच्चर वाले, पुलिस वाले, टेंट वाले एवं दुकानदार सभी मुस्लिम थे | मेरे एक साथी जो प्रतिवर्ष अमरनाथ जाते हैं, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायलय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मेहता जी ने मुझे कहा कि इनमे से कोई भी व्यक्ति हिन्दुस्तान जिंदाबाद नहीं बोल सकता | मेरे लिए यह एक नई गवेषणा थी | सैकड़ों बार अनेक लोगों के साथ प्रयास करने के बाद भी किसी ने हिन्दुस्तान जिंदाबाद नहीं बोला बल्कि दो चार लोगों ने चिढकर गुस्से में पकिस्तान जिंदाबाद अवश्य बोल दिया | यह मेरा दूसरा अनुभव था |

कश्मीर की सुन्दरता, प्राकृतिक सम्पदा एवं सौंदर्य अपनी और खींच रहा था लेकिन स्थानीय नागरिकों की मानसिक चिन्तना शक्ति को देख कर स्तब्ध रहना स्वाभाविक ही था |

स्वर्गीय महाराजा हरिसिंह द्वारा कश्मीर को भारत को सौंपे जाने के बाद भारत सरकार के प्रतिनिधियों से कितनी ही भूलें हुई हैं इसका उलेख यहाँ संभव नहीं है परन्तु वर्तमान पीढ़ी दुष्परिणाम अवश्य भोग रही है | आज कश्मीर के लोगों को सबसिडी देने की आवश्यकता नहीं है अपितु धारा 370 हटाकर वहाँ फ़ौज के बड़े रिटायर्ड अफसरों को बसाने की आवश्यकता है |

जिस दिन कश्मीरी लोग इस देश में अपनी आस्था व्यक्त करेंगे उसी दिन कश्मीर भारत का सिरमौर बन सकेगा |

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