सत्य

जब हमें किसी सत्य का ठीक-ठीक निश्चय हो जाता है, तो हमे आनंद की अनुभूति होती है | सत्य की परिधि व्यापक है | ज्यों-ज्यों मनुष्य का ज्ञान इस परिधि में फैलता जाता है, त्यों-त्यों उसका आनंद बढ़ता जाता है तथा सारे संशय मिटने पर वह इस आनंद में ही रमण करता है |
दृश्य जगत की क्षणभंगुरता एक ऐसा सत्य है, जिसका निश्चय होने पर मनुष्य आनंद की अनुभूति करता है | मनुष्य की इस विचार की तुलना उपनिषद में 'अस्वस्थ वृक्ष'से की गयी है | मनुष्य का यह विचार कि यह संसार आज है, कल नहीं रहेगा, यही अस्वस्थ वृक्ष है |

जो आज है वह कल नहीं रहेगा | मनुष्य के इसी विचाररूपी वृक्ष से सोम रस टपकता है | हम इस संसार की यात्रा करते हुए अनेक व्यक्ति-वस्तुओं से सम्बन्ध बनाते हैं | अनेक व्यक्ति इन संबंधों के इर्द-गिर्द ही भागदौड करते रहते हैं तथा मुख्य गंतव्य को भूल जाते हैं, संबंधों के छूटने का दर्द तथा अतृप्ति के भाव को लेकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं | इनमें से अनेक लोग ऐसे होते हैं जो बहुत सा धन पाकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं, अनेक पद को पाकर तथा अनेक राज्य को पाकर | इन सबको पाना चाहिए लेकिन इनसे आगे गौरव की कोई चीज न मानना, यह बड़ी भारी भूल है |












जीवन ही मृत्यु है


हमारे पास जीवन हरपल नहीं होता पर मृत्यु हरपल होती है | हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि आदमी 60 साल बाद मरता है या 
80 साल के बाद मरता है अथवा उसकी मृत्यु 110 साल बाद होती है और यह भी नहीं सोचना चाहिए कि किसी की मृत्यु 
बाल्यावस्था में होती या जवानी में अथवा बूढा होने के बाद | ऐसा सोचना अज्ञानता है, क्योंकि मनुष्य तो हर पल मर रहा है |
हर सांस जीवन है तो हर उच्छ्वास मृत्यु है | मनुष्य जन्म लेने के साथ ही मरना शुरू कर देता है |
सत्य तो यह है की मनुष्य ठीक से जन्म ले भी नहीं पाता कि मृत्यु उसका पीछा करना शुरू कर देती है | इसलिए मेरा मानना 
यह है कि प्रत्येक मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और प्रपंच छोडकर इश्वराधना तथा परोपकार में जीवन बिताना चाहिए |


1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर एवं ज्ञानबर्धक।

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