मीडिया का घिनोना तर्क

15 जून 2004 को गुजरात पुलिस ने केंद्रीय ख़ुफ़िया एजेंसी की सूचना के आधार पर लश्करे-तैयबा के चार आतंकियों को मार गिराया था, जिसमे वह इशरत जहाँ भी शामिल थी जिसे सेकुलरिस्टों का कुनबा तब निर्दोष और भोली-भाली लड़की साबित करने पर अड़ा था | पिछले दिनों हेडली ने इस की पुष्टि कर दी कि इशरत लश्कर की आतंकवादी थी | तब मीडिया के एक खंड ने उक्त घटना को पाठकों तक इस तरह प्रेषित किया था जेसे गुजरात की 'हिन्दुवादी सरकार' ने निरपराध अल्प संख्यकों को मार गिराया हो | 26/11 को मुंबई पर आतंकी हमले के दौरान मालेगांव बम धमाके में हिंदू संगठन का हाथ ढूंढने वाले महाराष्ट्र आतंक निरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे शहीद हुए थे | तब भी उनकी मौत के लिए हिंदूवादी संगठनों को कसूरवार ठहराने की कोशिश की गयी थी | एक पुस्तक लिखी गयी - 'Who killed Karkare' और मीडिया ने उसे खूब उछाला, घिनौने तर्क भी दिए मानो पुस्तक का एक-एक शब्द ब्रह्म वाक्य हो | प्रशासन तंत्र में हिंदूवादी व्यवस्था के हावी होने की चर्चा करते हुए पुस्तक में लिखा  है - "यदि I.B. ने पहले ही हिंदू आतंकवाद का खुलासा कर दिया होता तो ऐसे कई बम धमाके रोके जा सकते थे ......" |

उनकी ( हिंदुओं की ) योजना  शृंखलाबद्ध बम धमाके कर I.B. में मौजूद अपने शुभचिंतकों के माध्यम से उसका ठीकरा मुस्लिम समुदाय पर फोड़ना था | आश्चर्य की बात यह है कि भारतीय व्यवस्था में हिंदूवादी प्रभुत्व होने और अल्पसंख्यकों के दोहन की बात करने वाले उपरोक्त पुस्तक के लेखक एक कट्टर मुस्लिम हैं | यदि मीडिया के हाल के दुष्प्रचार का निहितार्थ निकलें तो हिन्दुवादी संगठन उपराष्ट्रपति की हत्या इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि वह एक मुसलमान हैं | भारत की सनातनी बहुलतावादी संस्कृति पर यह घृणित लांछन क्या रेखांकित करता है ?

जिहादी इस्लाम और नक्सली हिंसा का दायरा बढ़ता जा रहा है लेकिन सेकुलर सत्ता अधिष्ठान हिंदू आतंक का प्रलाप गा रहा है जिसे मीडिया का एक वर्ग तर्क के साथ दुष्प्रचार कर रहा है, जिसे राष्ट्र विघटन का मीडिया का घिनौना तर्क कहा जा सकता है |

2 comments:

  1. sir,

    you write too good. i hope you will write always good.
    yours sincerely
    Harish Kumar Arya

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  2. आपके तर्क प्रशंसनीय हैं, मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको इसीप्रकार लिखने की शक्ति प्रदान करता रहे|

    प्रणव आर्य

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